Wednesday, October 31, 2007

लाला जी ने केला खाया

लाला जी ने केला खाया
केला खा के मुँह बिचाकाया
मुँह बिचका कर कदम बढाया
कदम के नीचे छिलका आया
लाला जी गिरे धडाम
मुँह से निकला हाय राम, हाय राम.

Wednesday, October 10, 2007

छुटपन की कविताएँ

हम सभी अपने छुटपन में कविताएँ सुनते हैं, सीखते हैं, कक्षाओं में पढते हैं, उन्हें दुहराते हैं। छुटपन की कविताएँ इन्हीं कविताओं को अपनी यादों के भूलें बिसरे कोनों से लेकर आने का प्रयास होगा। इसमे आप सभी अपनी कवितायेँ भेज सकते हैं, जो बालोपयोगी हो और जिन्हें आज के बच्चे नर्सरी राइम या कविता की तरह याद कर सकें। मेरे पास अपनी यादों के खजाने मे जो कविताएँ हैं, उन्हें इस ब्लाग में देने की कोशिश रहेगी. अलावे इनके, मैंने बहुत सी कविताएँ यहाँ वहाँ से, पत्र पत्रिकाओं से एकत्र करके रखी हईं हैं, बरसों से, उन्हें भी रचनाकारों के नाम के साथ देने का प्रयास रहेगा। जिनके नाम उपलब्ध नहीं होंगे, उनके लिए क्षमा याचना
तो फिर देर किस बात की। उठिये, यादों के झरोखों से झांकिये और अपनी भूली बिसरी कविता यहाँ उतार दीजिए.आज के बच्चों को इससे बडी मदद मिल जाएगी।